Wednesday, October 24, 2007

जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है।

जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है
सशसा भूली याद तुम्हारी उर्र में आग लगा जाती है
बिरहा तताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है
मुझ को आग और पानी में रहने का अभाय्श बहुत है
जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है

धन्य धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हे महान बनाया
धन्य तुमहारी स्नेह क्रिप्नता, जिश्ने मुझे उद्दार बनाया
मेरी अंध भक्ति को केवल इतना मंद प्रकाश बहुत है
जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है

मैं में आँखें खोल देख ली है नादानी उन्माधो कि
मैं नी सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसदो कि,
फिर भी जीवन के प्रिसतो में पढ़ने का एतिहाश बहुत है
जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है

ओह! जीवन के थके पखेरोऊ बढे चलो हिम्मत मत हरो,
पंखो में भविउस बंदी है मत अततेत कि ओहर निहारो ,
क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है
जाने क्योँ तुम से मिलने कि, आशा कम विश्वाश बहुत है

1 comment:

Anonymous said...

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