Saturday, May 26, 2007

क्या बतायें

क्या बतायें कि जां गई कैसे ?
फिर से दोहरायें वो घड़ी कैसे ?

किसने रस्ते में चाँद रखा था
मुझको ठोकर वहाँ लगी कैसे ?

वक्त पे पाँव कब रखा हमने
जिंदगी मुँह के बल गिरी कैसे ?

आँख तो भर गई थी पानी से
तेरी तसवीर जल गई कैसे ?

हम तो अब याद भी नहीं करते
आपको हिचकी लग गई कैसे ?

गर ये शर्त है

गर ये शर्त - -ताल्लुक है कि है हमको जुदा रहना
तो ख्वाबों में भी क्यूँ आओ़ खयालों में भी क्या रहना

शजर जख्मी उम्मीदों के अभी तक लहलहाते हैं
इन्हें पतझड़ के मौसम में भी आता है हरा रहना

पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो सोचते क्या हो
मुकद्दर खुश्क पत्तों का, है शाखों से जुदा रहना

अजब क्या है अगर मखमूर तुम पर यूरिश- -गम है
हवाओं की तो आदत है चरागों से खफा रहना

किससे माँगें अपनी पहचान

हीय में उपजी,
पलकों में पली,
नक्षत्र सी आँखों केअम्बर में सजी,
पल‍ ‍दो पलपलक दोलों में झूल,
कपोलों में गई जो ढुलक,
मूक, परिचयहीनवेदना नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।
नभ से बिछुड़ी,
धरा पर गिरी,
अनजान डगर परजो निकली,
पल दो पलपुष्प दल पर सजी,
अनिल के चल पंखों के साथरज में जा मिली,
निस्तेज, प्राणहीनओस की बूँद नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।
सागर का प्रणय लास,
बेसुध वापिकालगी करने नभ से बात,
पल दो पलका वीचि विलास,
शमित शर नेतोड़ा तभी प्रमाद,
मौन, अस्तित्वहीनलहर नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान
सृष्टि ! कहो कैसा यह विधान
देकर एक ही आदि अंत की साँस
तुच्छ किए जो नादान
किससे माँगे अपनी पहचान।




Sunday, May 20, 2007

हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या?

हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?


तेरी चाह है सागरमथ भूधर,
उद्देश्य अमर पर पथ दुश्कर


कपाल कालिक तू धारण कर


बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर


जो ध्येय निरन्तर हो सम्मुख


फिर अघन अनिल का कोइ हो रुख


कर तू साहस, मत डर निर्झर


है शक्त समर्थ तू बढ़ता चल


जो राह शिला अवरुद्ध करे


तू रक्त बहा और राह बना


पथ को शोणित से रन्जित कर


हर कन्टक को तू पुष्प बना


नश्वर काया की चिन्ता क्या?


हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?





है मृत्यु सत्य माना पाति


पर जन्म कदाचित महासत्य

तुझे निपट अकेले चलना है


हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य


इस पथ पर राही चलने में


साथी की आशा क्यों निर्बल


भर दम्भ कि तू है अजर अमर


तेरा ध्येय तुझे देगा सम्बल


पथ भ्रमित न हो लम्बा पथ है


हर मोड खड़ा दावानल है


चरितार्थ तू कर तुझमे बल है


है दीर्घ वही जो हासिल है


बन्धक मत बन मोह पाशों का


ये मोह बलात रोकें प्रतिपल


है द्वन्द्व समर में मगर ना रुक


जो नेत्र तेरे हो जायें सजल


बहते अश्रु की चिन्ता क्या


हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?

Saturday, May 19, 2007

आज कुछ माँगती हूँ प्रिय

आज कुछ माँगती हूँ मैं प्रिय
क्या दे सकोगे तुम?
मौन का मौन में प्रत्युत्तर

अनछुये छुअन का अहसास
देर तक चुप्पी को बाँध कर खेलो अपने आसपास
क्या ऐसी सीमा में खुद को प्रिय बांध सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय...
तुम्हारे इक छोटे से दुख से कभी जो मेरा मन भर आये
ढुलक पड़े आँखों से मोती सीमा तोड़ कर बह जाये
तो ज़रा देर उँगली पर अपने दे देना रुकने को जगह तुम
उसे थोड़ी देर का आश्रय प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
आज कुछ मांगती हूँ प्रिय...
कभी जब देर तक तुम्हारीआंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्नके पीछे जा कर छुप जाऊँ
ऐसे में बिन आहट के समय को क्या लाँघ सकोगे तुम
आज कुछ माँगती हूँ प्रिय...
क्या दे सकोगे तुम?

क्या लिखूँ

क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
मै खिलता सुरज आज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰
वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की सान्स लिखूँ
वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँन्खो की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली -पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की मै बरसात लिखूँ
गीता का अॅजुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰
मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰
मै ऎक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰या मजहब की आन्खे चार लिखूँ॰॰॰
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँया दिल का सारा प्यार लिखूँ
क्या लिखूँ