हीय में उपजी,
पलकों में पली,
नक्षत्र सी आँखों केअम्बर में सजी,
पल दो पलपलक दोलों में झूल,
कपोलों में गई जो ढुलक,
मूक, परिचयहीनवेदना नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।
नभ से बिछुड़ी,
धरा पर आ गिरी,
अनजान डगर परजो निकली,
पल दो पलपुष्प दल पर सजी,
अनिल के चल पंखों के साथरज में जा मिली,
निस्तेज, प्राणहीनओस की बूँद नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान।
सागर का प्रणय लास,
बेसुध वापिकालगी करने नभ से बात,
पल दो पलका वीचि विलास,
शमित शर नेतोड़ा तभी प्रमाद,
मौन, अस्तित्वहीनलहर नादान,
किससे माँगे अपनी पहचान
सृष्टि ! कहो कैसा यह विधान
देकर एक ही आदि अंत की साँस
तुच्छ किए जो नादान
किससे माँगे अपनी पहचान।
Saturday, May 26, 2007
किससे माँगें अपनी पहचान
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1 comment:
heyy...itz so nyc..well.,,my namez arundhati thakur too...
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